वह अपराधी की तरह मेरे सामने खड़ा था. मैने पूछा "कौन ?" तो जवाब मिला,"मैं 2012 हूँ| आपसे विदा लेने आया हूँ| मैं इतना गुनहगार हूँ कि मेरी नजर नहीं उठती| अब दुबारा नहीं आऊंगा, चाहे मुझे क्षमा कर दें| जिस दिन मैं आया था, उस दिन आपने खुशियाँ मनाई| लेकिन मेरा आना शुभ न रहा| मेरे जाते-जाते सामूहिक बलात्कार की शिकार एक लड़की मरते हुए कानून-व्यवस्था की खामियाँ बता गई| भ्रष्टाचार को मिटाने की कोशिशें मेरे रहते कामयाब नहीं हो पाई| अन्ना के आन्दोलन का फूला हुआ गुब्बारा पिचक कर जमीन पर आ गिरा| केजरीवाल की पोल-खोल पार्टी दूसरे का बही-खाता खोल कर प्रतिक्षण आपको अपनी जादूगरी से भरमाते रहे|
जिस केंद्र सरकार पर आप भरोसा करते थे| उसके लँगड़ेपन की हालत यह थी कि विपक्ष सरकार की पालकी ढोने के कहार साबित हुए और सहयोगी टांग खिँचाई में दुश्मन बनकर आँखे तरेरते रहे| अनेक पार्टियों के नेताओं को सरकार शोले की तर्ज पर धमकाती रही' सो जाओ वरना C.B.I. का गब्बर आ जायेगा'| भाजपा की P.M.-in- waiting
की सूची में कुछ नाम और बड़े | सांप्रदायिकता से लड़ने वाले जातिवाद से ही बाहर नहीं निकल पाए | हर पार्टी के युवराजोँ ने अपना सिक्का जमाने में कामयाबी हासिल की | राजनीति में सिद्धांतों का पेट पिचक कर पीठ से जा लगा | किसानों को उनकी फसलें सूख कर मुँह चिड़ाती रहीं|
मजदूर ज्यादा मजबूर होकर दूसरों की गुलामी करने को मजबूर रहा| शिक्षा के केन्द्र लूट के और बड़े कारखाने बनकर चलते रहे| इस बीच जीवन के रिश्ते कुछ और दरके | कुछ पंख और कतरे गए| सपनों की कुछ उड़ान और रोकी गई| सामाजिक ताना-बानाथोड़ा और नष्ट हुआ| नदियों के पानी के साथ लोगों की आँखों का पानी भी सूखा और जनता के चेहरे पर कुछ और बेचारगी पसरी| लोग मानवाधिकारों की रट लगाए रहे क्योँकि वे भूल गए कि इस देश में केवल राजनीतिक अधिकार ही मान्य हैं| कामना करता हूँ कि नया वर्ष आपको इन अंधी गलियों से न गुजारे| इन्हीँ शुभकामनाओं के साथ अलविदा| "
थोड़े चिंतन-मनन के बाद मैने न्यूज-चैनल बदला जिस पर एक छोटे-से कोने में इंडिया-गेट का हाल और बाकी स्क्रीन पर New Year का जश्न दिखाया जा रहा था |
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